नियामक आयोग ने स्वीकार किया राजस्व आवश्यकता प्रस्ताव, बिजली दर बढ़ाने की ओर कदम बढ़ा सकता है यूपीपीसीएल

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता वर्ष 2025-26 को विद्युत नियामक आयोग ने खामियां निकालते हुए स्वीकार करके पावर काॅरपोरेशन को भेज दिया है. पहली बार ऐसा हो रहा है कि वार्षिक राजस्व आवश्यकता संशोधित प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद विद्युत नियामक आयोग की वेबसाइट पर नहीं डाला गया.

उपभोक्ता परिषद का आरोप है कि विद्युत नियामक आयोग के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब संशोधित प्रस्ताव पर वार्षिक राजस्व आवश्यकता स्वीकार कर गुपचुप तरीके से डिफिशिएंसी नोट के साथ पावर काॅरपोरेशन को भेज दिया गया, जो पारदर्शिता का बड़ा उल्लंघन है. विद्युत नियामक आयोग को पावर काॅरपोरेशन ने मनगढ़ंत आंकड़ों के आधार पर पहले जो 10000 करोड़ का घाटा दिखाया था उसको बढ़कर 19,600 करोड़ करके 30% बढ़ोतरी का प्रस्ताव आकलित किया है.

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पहली बार देखने को मिल रहा है कि विद्युत नियामक आयोग ने वार्षिक राजस्व आवश्यकता को स्वीकार करने के बाद पुनः कॉरपोरेशन की मांग पर उसमें टाइम एक्सटेंशन दिया है, लेकिन वह भी डिफिशिएंसी नोट के साथ. यह उत्तर प्रदेश में एक अनोखा मामला है, जब संशोधन वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल हो गई तो सबसे पहले उसमें डिफिशिएंसी नोट जारी करके कमियां दाखिल करवाना चाहिए था, लेकिन विद्युत नियामक आयोग ने एक साथ दोनों काम कर दिया.

उन्होंने कहा कि डिफिशिएंसी नोट भी उसी में जारी कर दिया और वार्षिक राजस्व आवश्यकता को तीन दिन के अंदर समाचार पत्रों में प्रकाशित करने के लिए आदेश भी निर्गत कर दिया. अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि पावर कॉरपोरेशन डिफिशिएंसी नोट में कमियां दूर करके तीन दिन में कैसे विज्ञापन प्रकाशित कराएगा और मनगढ़ंत आंकड़ों पर विज्ञापन छपता है तो उस पर प्रदेश की जनता की आपत्तियां व सुझाव क्या दाखिल करेगी. कुल मिलाकर आयोग ने पावर काॅरपोरेशन के साथ एक बार फिर दरियादिली दिखाई है जो रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का उल्लंघन है. उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि यह प्रदेश के उपभोक्ताओं के लिए दुर्भाग्य की बात है कि उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ सर प्लस निकल रहा है, लेकिन विद्युत नियामक आयोग उस पर सुनवाई न करके दरों में बढ़ोतरी के लिए पावर काॅरपोरेशन को बढ़ा रहा है जो ऊर्जा क्षेत्र में रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का उल्लंघन है.

उपभोक्ता परिषद का सवाल : सरकारें लेती है पॉलिटिकल लाभ तो टैरिफ सब्सिडी देना जिम्मेदारी?

उपभोक्ताओं की बिजली दरें अधिक न हों इसके लिए उत्तर प्रदेश से कहीं ज्यादा टैरिफ सब्सिडी दूसरे राज्य देते हैं. पूरे देश में जो सरकारें राजकीय सब्सिडी टैरिफ के मद में वर्ष 2023- 24 में दे रही हैं वह लगभग दो लाख 10,784 करोड़ है. पूरे देश में पांच ऐसे राज्य जो टॉप पर अपने उपभोक्ताओं की बिजली दरें कम करने के लिए वर्ष 2023-24 में सब्सिडी दी है उसमें भी उत्तर प्रदेश पांचवें नंबर पर है.

राज्य डिस्कॉमटैरिफ सब्सिडी वर्ष 2023-24
राजस्थान27794 करोड़ रुपये
कर्नाटक27719 करोड़ रुपये
मध्य प्रदेश23635 करोड़ रुपये
पंजाब17631 करोड़ रुपये
उत्तर प्रदेश16479 करोड़ रुपये

जा रही है, वह पूरी तरह असंवैधानिक है. राज्य की सरकारें सब्सिडी तभी देती हैं जब वह उसका पॉलिटिकल लाभ लेती हैं तो राज्य की सरकारों ने अगर पॉलिटिकल लाभ लिया है तो सब्सिडी देना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है, इसलिए अभी भी समय है उत्तर प्रदेश सरकार को अपने निजीकरण के फैसले को वापस लेना चाहिए, अन्यथा की स्थिति में आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता वोट की ताकत से अपना हिसाब बराबर करेगी.

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