लखनऊ: संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) के सभागार में सीबीएमआर के 19वें वार्षिकोत्सव कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा, मरीजों को आधुनिक इलाज उपलब्ध कराने के लिए शोध जरूरी है. नई दवाएं, इम्प्लांट व तकनीक की खोज आवश्यक है. इसमें सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) अहम भूमिका अदा कर रहा है.
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि सीबीएमआर मानव स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए तत्पर उत्तर प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत अनुसंधान प्रौद्योगिकी व नवाचार का एक उत्कृष्ट केंद्र है. यह भारत में राज्य सरकार द्वारा स्थापित एकमात्र संस्थान है, जो रोगियों की समस्याओं के लिए डॉक्टरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है.
डिप्टी सीएम ने कहा कि सीबीएमआर को नेशनल ट्रांसलेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट के रूप में स्थापित करने की तैयारी है. भारत एवं उत्तर प्रदेश की प्राथमिकताओं के मद्देनजर सीबीएमआर में पांच विभागों तथा इनक्यूबेशन सेंटर का गठन किया गया.
व्यवसायीकरण की दिशा में हो रहा काम: डिप्टी सीएम ने बताया कि व्यवसायीकरण की दिशा में काम किया जा रहा है. साथ ही एक टेक्नोलॉजी जिसको आईआईटी बॉम्बे के साथ विकसित किया गया है. टेक्नोलॉजी के व्यवसायीकरण के लिए सीबीएमआर ने भारत सरकार के उपक्रम नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट काउंसिल के साथ समझौता ज्ञापन किया गया है.
वहीं, सीबीएमआर के निदेशक डॉ. आलोक ने कहा कि नए शोध को बढ़ावा देने के लिए अहम कदम उठाए गए हैं. नए विभागों का गठन किया गया है. इसमें अमेरिका, जर्मनी और स्वीडन के प्रतिष्ठित संस्थानों से आठ वैज्ञानिकों का चयन हुआ है. साथ ही आंतरिक अनुसंधान परियोजनाओं के माध्यम से ट्रांसलेशन अनुसंधान को बढ़ावा मिला.
देश-विदेश में मिली पहचान: अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. संजीव मिश्र ने कहा कि सीबीएमआर में होने वाले शोध को भारत एवं विश्व पटल पर पहचान मिली है. रोगियों को आधुनिक उपचार उपलब्ध कराने के लिए बीते कई वर्षों में उत्तर प्रदेश सरकार के नेतृत्व में संस्थान में कई नीतिगत निर्णय लिए गए. जिससे संस्थान में खासा बदलाव देखने को मिला है.
शोधकर्ता हिमांशु पांडे ने बताया कि टिंनाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज के कान में सनसनाहट और घंटी वाली आवाज आती है. इससे मरीज काफी परेशान होते हैं. उनका ध्यान दूसरे कामों में नहीं रख पाता है. इसको लेकर के रिसर्च चल रहे हैं और कहीं न कहीं यह बीमारी जो है वह मस्तिष्क से जुड़ी हुई है. उन्होंने कहा कि मस्तिष्क की जो संरचनाओं हैं, वह प्रभावित होती हैं. जिसकी वजह से यह दिक्कत होती है. इसका इलाज यह है कि मस्तिष्क की वह नस जो टिंनाइटिस का कारण है. उस में बहुत माइनर सा करंट दिया जाता है, जिससे यह ठीक हो सकता है. फिलहाल और भी शोध चल रहा है. वही एक और शोधकर्ता कल्पना धानिक ने बताया कि वह बच्चों के ऊपर रिसर्च कर रही हैं. ऐसे बच्चे जिन्हें अटैक आते हैं.
कई परियोजनाएं हुईं प्रारंभ: हिमांशु पांडे ने बताया कि कि इस प्रयास के फलस्वरूप कई ट्रांसलेशन परियोजनाएं प्रारंभ हुई. जिससे पेटेंट और प्रौद्योगिकियों का विकास हो रहा है. साथ ही अनेक शोध पत्र ख्याति प्राप्त अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित हुए. उच्च गुणवत्ता वाले अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में 200 से अधिक शोध पत्र विगत 3 वर्षों में प्रकाशित हुए. इसके फलस्वरूप वर्ष 2024-25 में सीबीएमआर भारत में एक मात्र राज्य सरकारी संस्थान है जिसे विश्व में शीर्ष 200 संस्थानों में स्थान प्राप्त हुआ है. यह रैंकिंग विश्व के सर्वश्रेष्ठ शोध पत्रिका नेचर इंडक्स द्वारा विभिन्न देशों के संस्थानों को दी गई है. बीते तीन वर्षों में 14 पेटेंट दाखिल हुए. चार पेटेंट स्वीकृत हुए.
कार्यक्रम में अटल बिहारी वाजपेई मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. संजीव मिश्र, कानपुर आईआईटी के डॉ. आशुतोष वर्मा, केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. सुभाष कौशिक, डॉ. अमिताभ मिश्र, सीबीएमआरआई के डीन डॉ. नीरज सिन्हा, रायबरेली एम्स की डॉ. अर्चना वर्मा, लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह मौजूद रहे.